‘सिंध का भगत सिंह’ नाम से मशहूर हेमू कलानी कौन थे: Hemu Kalani History In Hindi
‘सिंध का भगत सिंह’ नाम से मशहूर हेमू कलानी कौन थे: Hemu Kalani History In Hindi – स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धाओं में से एक है, स्वतंत्रता सेनानी हेमू कालाणी। जिन्होंने भारतीय इतिहास की अनमोल धारा में एक प्रमुख नाम कमाया है। हेमू कालाणी का जीवन संघर्ष, बलिदान और समर्पण से भरा हुआ है। आज हम इस आर्टिकल में हेमू कालाणी के जीवन का एक छोटा-सा परिचय प्रस्तुत करेंगे, तो इस महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए जुड़े रहे हमारे साथ इस आर्टिकल के अंत तक।
हेमू कालाणी की बायोग्राफी: Hemu Kalani Biography
Category | Information |
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नाम | हेमू कालाणी |
जन्मदिन | 23 मार्च 1923 |
मृत्यु दिनांक | 21 जनवरी 1943 |
उम्र | 19 |
जन्मस्थान | सुक्कूर, सिन्ध |
पिता | पेसूमल कालाणी |
माता | जेठी बाई |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
हेमू कालाणी कौन थे: Hemu Kalani Kaun The?
हेमू कालाणी का जन्म 23 मार्च, 1923 को सिंध प्रांत के सखर जिले में हुआ था। उनकी मां ने उन्हें बचपन से ही देशभक्ति की शिक्षा दी थी। वे अपने बचपन से ही देश के प्रति समर्पित थे। 1930 में महात्मा गांधी के अधिवेशन में उनकी भावनाओं में तेजी पैदा हुई। इस अधिवेशन ने उनके देशप्रेम में और भी गहराई डाल दी।
हेमू की मां के प्रेरणादीप्त होने पर उन्होंने अपने बचपन में ही देश की सेवा में जुट जाने का इरादा किया। उन्होंने अपने जीवन को देश के लिए समर्पित करने की अभिलाषा रखी। जो उम्र में खिलौनों या मिठाई के पीछे भागते हैं, वही हेमू कालाणी फांसी के फंदे को टेढ़ा करने की तैयारी कर रहे थे।
हेमू ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। वे स्वतंत्रता सेना में शामिल होकर अपने जान का बलिदान देने के लिए तैयार थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर आंदोलनों में भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रकट किया। उन्होंने संघर्ष के मैदान में अपने पूर्वजों के प्राणों की आहुति दी और देश की आजादी के लिए अपनी जान की बाजी लगाई।
हेमू कालाणी का इतिहास: Hemu Kalani History
हेमू कालाणी, जिन्हें सिंध के “भगत सिंह” के नाम से भी जाना जाता है। हेमू कालाणी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा थे। उनका जन्म 23 मार्च, 1923 को वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हुआ था। हेमू कालाणी का बचपन बहुत ही साधारण रहा है, लेकिन उनकी सोच में गहराई से राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता के प्रति प्रेम था।
हेमू कालाणी का जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था। बचपन से ही हेमू राष्ट्रीय के प्रति बहुत ही जज्बाती थे। हेमू कालाणी का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने समर्थन को कभी झुकने नहीं दिया। उनका योगदान आज भी हमारे समाज में एक महान उत्साह के रूप में याद किया जाता है।
हेमू कालाणी ने बचपन में ही राष्ट्रीय आंदोलनों के बारे में सुना और उनकी सोच में बदलाव आया। उनका समय बड़ा ही विपरीत था। जब उनका बचपन था, तब भारत में संघर्ष चरम पर था। हेमू की उम्र 16 साल की थी जब उन्होंने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और ज्यादातर समय संघर्ष में लगाया। उन्होंने अपने जीवन को स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित किया। हेमू का योगदान स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।
हेमू कालाणी क्रांतिकारी: Hemu Kalani Freedom Fighter
हेमू कालाणी साल 1942 में आरंभ किए गए महात्मा गांधी के “भारत छोड़ो आन्दोलन” में शामिल हुए थे। सिंध में आंदोलन का समर्थन इतना था कि ब्रिटिश साम्राज को उसके बाद उसके पीछे चलने के लिए यूरोपीय बटालियन्स को लगाना पड़ा।
उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना भरी हुई हथियारों से लैडेन रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से गुजरेगी। हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त-व्यस्त करने की योजना बनाई। वहां तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने हेमू को पकड़ लिया, और कैद किया फिर उन्हें दंडित किया गया।
भारतीय इम्पीरियल पुलिस ने उन्हें बिना किसी सहयोगी के नाम बताए काम करने के लिए जमानत देने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने किसी भी जानकारी को जाहिर नहीं किया। उन्हें फिर से जानकारी देने की शर्त पर गुंज़ाइश दी गई थी कि संस्थाओं के नाम बताने पर ही जमानत मिलेगी। फिर भी उन्होंने किसी भी जानकारी को जाहिर नहीं किया और 21 जनवरी, 1943 को फांसी के फन्दे पर हँसते-हँसते झूल गए।
हेमू कालाणी की फांसी: Hemu Kalani Hanging
हेमू कालाणी को 21 जनवरी 1943 को फाँसी दी गई। कहा जाता है कि हेमू कालाणी को मौत की सजा मिलने पर बहुत खुशी हुई थी। उनकी फाँसी के दिन, वे बहुत खुश थे, और भगवद गीता की एक प्रति हाथ में लेकर हंसते-हंसते फाँसी के फंदे की ओर चले गए।
हेमू कालाणी ने अपने जीवन में देश की सेवा के लिए उत्कृष्ट प्रतिबद्धता दिखाई। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ साहस से लड़ाई लड़ी और अपनी आजादी के लिए लड़ने का साहस दिखाया। उन्होंने अपने जीवन को देश की सेवा में समर्पित किया और स्वतंत्रता संग्राम के शूरवीरों के रूप में अमर हो गए।
हेमू कालाणी की मृत्यु: Hemu Kalani Death
हेमू कालाणी को उनके साहस, समर्पण और निष्ठा के लिए सराहा जाता है। उन्होंने संघर्ष के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को जागरूक किया और उन्हें स्वतंत्रता के लिए उनकी जिम्मेदारी समझाई। उन्होंने अपने आप को एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी के रूप में साबित किया। हेमू कालाणी का संघर्ष और उनकी शहादत बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनका सपना था कि उनका देश स्वतंत्र हो और लोगों को न्याय मिले।
हेमू कालाणी की शहादत ने उन्हें अमर बना दिया है। उनकी वीरता की कहानी आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती है। उनके संघर्ष और बलिदान को याद करके हमें अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को याद रखना चाहिए। उनकी शहादत हमें यह याद दिलाती है कि स्वतंत्रता की कीमत क्या है और हमें इसे किस प्रकार के संघर्ष से प्राप्त करना है।
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FAQ:
हेमू कालाणी को फांसी कब दी गई?
हेमू कालाणी को 21 जनवरी, 1943 को फांसी दी गई थी।
हेमू कलानी को फांसी क्यों दी गई?
हेमू को उसके सह-षड्यंत्रकारियों के नाम उजागर करने के प्रयास में भारतीय शाही पुलिस द्वारा पकड़ा गया, कैद किया गया और यातना दी गई। उन्होंने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया, उन पर मुक़दमा चलाया गया और मौत की सज़ा सुनाई गई।
हेमू कलानी ने क्या किया?
हेमू कालाणी एक स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे। वह छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) से जुड़े थे। वे देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए तैयार थे और उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाई। उन्होंने अपनी बहादुरी और साहस के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा और आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया।