Bhagat Singh Wiki In Hindi, Biography, Wikipedia, Fasi Date, Village, Birthday
Bhagat Singh Wiki In Hindi, Biography, Wikipedia, Fasi Date, Village, Birthday – भगत सिंह, जिन्हें हिन्दी फिल्मों में शहीद भगत सिंह के रूप में जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। तो आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से शहीद भगत सिंह के जीवन परिचय पर बात करेंगे। इस महत्वपूर्ण जानकारी को प्राप्त करने के लिए जुड़े रहे हमारे साथ इस आर्टिकल के अंत तक।
भगत सिंह की बायोग्राफी: Bhagat Singh Biography
Category | Information |
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नाम | भगतसिंह |
जन्म | 27 सितंबर 1907 |
जन्म स्थान | लायलपुर जिला बंगा |
अन्य नाम | भांगा वाला |
माता का नाम | विद्यावती कौर |
शिक्षा | नेशनल कॉलेज लाहौर |
पिता का नाम | किशन सिंह |
चाचा का नाम | अजीत सिंह |
मृत्यु | 23 मार्च 1931 |
भगत सिंह कौन थे: Bhagat Singh Kaun The?
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है, जो पंजाब, भारत में स्थित है। जन्म के समय उनके पिता “किशन सिंह” और कुछ परिवार के सदस्य जेल में थे, क्योंकि उन पर साल 1906 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जबरन लागू किए गए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने का इल्जाम लगा था। उनकी मां का नाम “विद्यावती कौर” था।
भगत सिंह ने अपनी पांचवीं कक्षा तक गांव में पढ़ाई की, और फिर उनके पिता ने उन्हें ‘दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल’, लाहौर में भर्ती करवाया। बहुत छोटी उम्र में भगत सिंह, महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। लेकिन उनका प्रभाव करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से भी था।
भगत सिंह की शिक्षा: Bhagat Singh Education
भगत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दयानंद एंगलो वेदिक हाई स्कूल से प्राप्त की और इन्होंने ग्रेजुएशन के लिए नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया। लेकिन उनके अंदर देश प्रेम की भावना ने उस समय कुछ ज्यादा ही प्रभाव डाल दिया। वे अपने देश को गुलामी की बेड़ियों में नहीं देखना चाहते थे और वे अपने देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित थे। इसलिए, भगत सिंह ने पढ़ाई को छोड़कर देश की सेवा में अपना योगदान देने का निर्णय लिया। उनके लिए यह महत्वपूर्ण था कि उनके देश को किसी भी तरह से आजादी मिलनी चाहिए, और वे इस लड़ाई में भाग लेने के लिए तत्पर थे।
Category | Information |
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स्कूल | दयानंद एंगलो वेदिक हाई स्कूल, लाहौर |
कॉलेज | नेशनल कॉलेज |
डिग्री | कोई नहीं |
भगत सिंह का परिवार: Bhagat Singh Family
भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह था, जबकि उनकी मां का नाम विद्यावती था। भगत सिंह के परिवार में कुल मिलाकर 10 भाई और बहन थे। उनके परिवार में देशभक्ति की भावना गहरी थी, और उनके चाचा का नाम अजीत सिंह था, जो एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके परिवार में कई अन्य महान स्वतंत्रता सेनानियों ने भी अपने जीवन को देश के लिए समर्पित किया।
भगत सिंह को अपने परिवार से ही देश की प्रति लगाव और समर्पण की भावना प्राप्त हुई थी। उन्होंने अपनी माता को धरती का स्वरूप माना और भारत को स्वतंत्र कराने का संकल्प लिया। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही वो काम किया जो शायद ही कोई और कर पाता। उनके परिवार ने उनके साथ पूरा सहयोग किया, जिससे वे इतनी ऊंचाईयों तक पहुंच सके, और वे अमर हो गए हैं।
Category | Information |
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पिता | किशन सिंह संधू |
माता | विद्यावती कौर |
भाई-बहन | रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर |
चाचा | अजीत सिंह |
भगत सिंह क्रांतिकारी: Bhagat Singh Freedom Fighter
- जलियांवाला बाग हत्याकांड:
- 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह बहुत दुखी हुए थे और महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का उन्होंने खुलकर समर्थन किया था। भगत सिंह अंग्रेजों को ललकारते थे और गाँधी जी के कहे अनुसार ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे। चौरी चौरा में हुई हिंसात्मक गतिविधियों के चलते गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन बंद कर दिया था, जिसके बाद भगत सिंह उनके फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने गाँधी जी की अहिंसावादी बातों को छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वाइन करने की सोची।
- काकोरी कांड:
- इसके बाद भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारी सदस्यों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। उन्होंने 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर से लखनऊ के लिए चली पैसेंजर ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर रोककर ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूट लिया। इस घटना को “काकोरी कांड” के नाम से जाना जाता है।
- लाला लाजपत राय की मृत्यु:
- 30 अक्टूबर 1928 को ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन को लागू करने के फैसले पर लाजपत राय ने “साइमन वापस जाओ” का नारा दिया था, जिसका विरोध करते हुए उन्हें लाठी चार्ज किया गया। उनकी घायली से उनकी मृत्यु हो गई।
- असेंबली में बम फेंकना:
- लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद, भगत सिंह और उनके साथियों ने ब्रिटिश ऑफिसर जेपी सांडर्स को मारने का प्लान बनाया। उन्होंने बॉम्बे असेम्बली में बम फेंकने की कोशिश की, जिससे कई लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। इसके बाद भगत सिंह और उनके साथियों को पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया था।
इन घटनाओं ने भगत सिंह को राजनीतिक एवं स्वतंत्रता संग्राम की ओर मोड़ दिया। उन्होंने अपने अहिंसावादी दृष्टिकोण को छोड़ दिया और उन्होंने शूरवीरों की भावना से भरपूर आत्मा के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। उनकी शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर योद्धा के रूप में स्थायी स्थान प्राप्त हुआ।
भगत सिंह की फांसी: Bhagat Singh Hanging
भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, और सुखदेव ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्णय लिया। साल 1929 में, भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड पर ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल में बम फेंका। इसके साथ ही, उन्होंने “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे भी लगाए। उन्होंने बचने की कोई कोशिश नहीं की और खुद ही गिरफ्तार हो गए।
इसके बाद, उन पर मुकदमा चलाया गया और फिर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। जेल में रहते हुए भी, उन्होंने कैदियों पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ भी आंदोलन किए। उन्होंने जेल में ही अपनी एक किताब “मैं नास्तिक क्यों हूँ” लिखी। फिर कुछ समय बाद, उन्हें 23 और 24 मार्च की बीच की रात में ही फांसी दे दी गई, और ब्रिटिश सरकार ने जनसमूह के प्रदर्शन के डर से उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया था।
भगत सिंह की मृत्यु: Bhagat Singh Death
23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव को फांसी दे दी गई। इस दिन तीनों के फांसी की तारीख 24 मार्च थी, लेकिन उस समय पूरे देश में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे। इससे ब्रिटिश सरकार को डर था कि कहीं फैसला बदल न जाए, और उन्होंने तीनों को 23 और 24 मार्च की मध्यरात्रि में ही फांसी दे दी।
यह तीनों क्रांतिकारियों के बलिदान का संदेश था कि वे अपने देश की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की आहुति देने को तैयार थे। जब उन्हें फांसी दी गई, तो भी उनके चेहरों पर मुस्कान थी और वे “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगा रहे थे। उनके इन हौसले ने ब्रिटिश सरकार को भी चौंका दिया था, क्योंकि उन्हें यह दिखाई दिया कि भारतीय अपने देश के लिए कितने सुपुर्द हैं।
शहीद दिवस: Shahid Diwas
भगत सिंह की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उनका जीवन और उनका संघर्ष आज भी हमारे दिलों में जिंदा है। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, और भारतीय समाज उन्हें सदैव सम्मान और श्रद्धांजलि देता रहेगा। उनकी मृत्यु तिथि को भारत उनके प्रति अपना आभार और सम्मान प्रकट करता है। भगत सिंह प्रत्येक भारतीय युवा के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं।
उन्होंने मात्र 23 साल की उम्र में उन वीरता और साहस का परिचय किया जो अद्वितीय है। उन्होंने अपने जीवन को देश की सेवा में समर्पित किया। उनका निष्ठा और समर्पण हमें एक महान उदाहरण प्रस्तुत करता है। उनकी बहादुरी, आत्मबल, और अपने आदर्शों के लिए उन्हें देशवासियों की पूरी श्रद्धा और सम्मान है।
Conclusion:
भगत सिंह की यात्रा ने हमें सिखाया है कि जीवन का महत्व देश और समाज के प्रति समर्पित रहने में है। उनके बलिदान ने हमें एक मजबूत, स्वतंत्र और समृद्ध भारत की ओर प्रेरित किया है। हम हमेशा भगत सिंह को श्रद्धांजलि देते हैं और उनकी अमरता का एहसास करते हैं। उनकी कहानी हमें साहस, समर्पण और स्वतंत्रता का महत्व समझाती है।
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FAQ:
bhagat singh ko fansi kab di gai
भगत सिंह को फांसी 23 मार्च 1931 को दी गई थी।
भगत सिंह का जन्म और मृत्यु कब और कहां हुई थी?
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा गाँव में हुआ था। उनकी शहादत 23 मार्च 1931 को हुई थी, जब उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई थी।
भगत सिंह की आखिरी इच्छा क्या थी?
भगत सिंह के जीवन का एक महत्वपूर्ण संघर्ष उनकी आखिरी इच्छा से जुड़ा है। उन्हें फाँसी के वक्त, जेल में, लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जब उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई, तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें लेनिन की किताब पूरी तरह से पढ़ने का समय चाहिए।
कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने उन्हें सूचित किया कि उनकी फाँसी का समय आ गया है, लेकिन उन्होंने विचार किया और उन्होंने कहा- “ठहरिये!” जो एक साहसिक और प्रेरणादायक पल था।